वाराणसी
वाराणसी, जिसे काशी भी कहते हैं, भगवान शिव का शाश्वत निवास है—अविमुक्त, कभी नित्य-त्यागित।
लिंग और स्कंद पुराणों के अनुसार, शिव ने अपना त्रिशूल यहीं प्रतिष्ठित कर इस नगर की स्थापना की और काशी की पवित्र गंगा में जिस भी आत्मा की अस्थियाँ विसर्जित होती हैं, उसे अक्षय पुण्य और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का आश्वासन मिला।
प्रमुख पौराणिक विशेषताएँ
प्रयागराज
प्रयागराज—पूर्व में इलाहाबाद—तीर्थराज के नाम से विख्यात है, क्योंकि यहीं त्रिवेणी संगम है, जहाँ गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं। पुराणों में ब्रह्मा स्वयं ने सभी तीर्थों के पुण्य का तुलनात्मक मूल्यांकन किया और पाया कि प्रयाग की कोई सानी नहीं, इसलिए यह पूर्वजों के अनुष्ठानों के लिए सर्वोच्च शुद्धिकरण स्थल बना।
प्रमुख पौराणिक विशेषताएँ
हरिद्वार
हरिद्वार—ईश्वर का द्वार—सप्तपुरियों में से एक है, जहाँ गंगा प्रथम बार पृथ्वी पर अवतार लेती है।
किंवदंती कहती है कि राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों की मुक्ति हेतु कठोर तपस्या की और स्वर्गीय गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया।
गरुड़ पुराण इस घाट को पूर्वजों के अनुष्ठानों के लिए अति प्रभावशाली बताता है, जबकि समुद्र मंथन के समय हर की पौरी पर अमृत की कुछ बूँदें गिरने की कथा इसे विशेष रूप से पवित्र बनाती है।
प्रमुख पौराणिक विशेषताएँ
अतिरिक्त जानकारियाँ
भागीरथ के पूर्वजों की मुक्ति का वास्तविक स्थल भागीरथ के 60,000 पूर्वजों को तब मोक्ष प्राप्त हुआ जब पाताल (दिव्य अधोलोक) में उनकी अस्थियों पर गंगा का पवित्र प्रवाह बहा। आधुनिक अवधारणाओं में पाताल को गंगा सागर (सागर द्वीप) से जोड़कर देखा जाता है, जो भगीरथी नदी के मुहाने पर स्थित है। पौराणिक प्रसंग
आधुनिक तीर्थयात्रा संबंध
संबंधित दृष्टिकोण
श्रद्धालु किसी भी मृतात्मा के मोक्ष की कामना से हरिद्वार, वाराणसी और प्रयागराज में विसर्जन करते हैं, जो उस आदि घटना के विभिन्न पहलुओं का प्रतिध्वनि हैं।
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