दानव गयासुर और प्रमुख स्थल
- पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, दानव गयासुर ने कठोर तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान पाया कि वह दान करता रहे तो अजेय रहेगा।
- पर उसने सारा धन संचित कर दान देना बंद कर दिया और वर्तमान गया क्षेत्र में आतंक मचाया।
- ब्रह्माण्डीय संतुलन बनाए रखने हेतु विष्णुजी ने तीन बार गयासुर से दान का आग्रह किया; जब उसने न माना तो विष्णुजी ने उसे परास्त किया।
- गयासुर का शरीर पहाड़ी बन गया और उसके सीने पर विष्णुजी का पदचिह्न अंकित हो गया।
विष्णुपद मंदिर और पवित्र पदचिह्न
- जिस स्थान पर विष्णुजी का पदचिह्न गयासुर के शरीर पर था, वहां आज विष्णुपद मंदिर का गर्भगृह स्थित है।
- इस पदचिह्नधारी पत्थर को “विष्णुपदा” कहकर पूजा जाता है।
- यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थों में से एक है, जो विष्णुजी को रक्षक और पालनहार रूप में प्रतिष्ठित करता है।
गया का संस्थापन—पितृ तीर्थ
- गयासुर पर विजय के बाद ऋषि श्रिंगी ने यहीं अपने पितरों के श्राद्ध-अर्चनाएँ कीं और उनकी मुक्ति के चमत्कार देखे।
- गरुड़ पुराण, विष्णु पुराण एवं वायु पुराण में गया को पिंडदान हेतु सर्वोत्तम तीर्थ बताया गया।
- संस्कृत श्लोक “गयायाम् पिंड्डदानच्छ पुत्रेण पुत्रत” के अनुसार, गया में पिंड अर्पित कर पुत्र अपना धर्म पूरा करता है।
- फल्गु नदी तट, विष्णुपद मंदिर प्रांगण तथा अक्षयवट के नीचे यह पितृकर्मों का अनिवार्य केंद्र बन गया।
गया की अन्य मिथकीय परतें
- मंगला गौरी मंदिर
51 शक्तिपीठों में से एक, जहाँ सती का योनिमण्डल गिरा माना जाता है; यहाँ प्रजनन व पारिवारिक सौहार्द्र की कामना से श्रद्धालु आते हैं। - फल्गु नदी की कथा
महाभारत में युधिष्ठिर के श्राप से यह केवल वर्षा ऋतु में ही बहती है; शेष समय भूमिगत रहती है और गड्ढा खोदने पर जल प्रकट होता है। - फल्गु तट के घाट
देव घाट, पितामहेश्वर घाट, पुनपुन घाट और प्रेतशिला घाट—प्रत्येक देव-ऋषि समाधि व श्राद्धकर्मों हेतु पवित्र स्थल हैं।
आइए गया के मुख्य घाटों के बारे में विस्तार से जानें।
देव घाट
- फल्गु नदी के पश्चिमी तट पर विष्णुपद मंदिर के ठीक नीचे स्थित मुख्य घाट।
- हर सुबह व शाम पितृ-पिंडदान-अर्चना होती है।
- यह अनुष्ठान गयावल पंडों द्वारा कराया जाता है, जो ब्रह्मकल्पित ब्राह्मणों के वंशज हैं।
पितामहेश्वर घाट
- पितामहेश्वर (शिव) मंदिर एवं समीप की शीतला माता की प्रतिमा केंद्रबिंदु हैं।
- विशाल लाल-रेतरोली कुंड एवं नवीनीकृत मंदिर महाशिवरात्रि व पितृ पक्ष में भारी भीड़ आकर्षित करते हैं।
पुनपुन घाट
- पुनपुन नदी तट पर प्रथम अनिवार्य तर्पण स्थल।
- कथा के अनुसार श्रीराम ने यहीं राजा दशरथ के लिए पिंडदान किया था; इसलिए हर यात्री पहले यहीं तर्पण करता है।
- पितृ पक्ष मेला भी यहीं आयोजित होता है।
प्रेतशिला घाट
- प्रेतशीला पर्वत की चोटी पर स्थित, वायु एवं गरुड़ पुराणों में वर्णित।
- प्रेतशिला चट्टान की दरारों में पिंडदान से आत्माएँ बंधनमुक्त होती हैं।
- राम-लक्ष्मण ने यहीं दशरथ के श्राद्ध किए; अहिल्याबाई ने यम मंदिर का निर्माण कराया।
- 600 से अधिक सीढ़ियाँ; वृद्धजन के लिए पालकी सेवा उपलब्ध है।
प्रेतशिला घाट की कथामूल और नाम
- प्रेतशिला मूलतः प्रेत परवत के नाम से जानी जाती थी।
- गरुड़ पुराण के अनुसार यह चट्टान आत्माओं को अपनी ओर आकर्षित करती है।
राजा दशरथ का श्राद्ध
- श्रीराम-लक्ष्मण ने यहीं पिता दशरथ के लिए पिंडदान किया।
- चट्टान पर ब्रह्मा के अंगूठे के दो चिह्न दृष्टिगोचर होते हैं।
यम का मंदिर और पवित्र कुंड
- चोटी पर यम का मंदिर; नीचे ब्रह्मा कुंड और राम कुंड स्थित हैं।
- श्रद्धालु स्नान कर श्राद्ध हेतु उत्तम लाभ मानते हैं।
आत्माओं की मुक्ति
- श्राद्ध ग्रंथ प्रेतशिला को आत्मा मुक्ति का प्रमुख केंद्र कहते हैं।
- पिंडदान के बाद आत्माएँ प्रेतलोक से मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होती हैं।
जानिए
- प्रेतशिला चढ़ने के लिए 600 सीढ़ियाँ हैं; असमर्थ हों तो पालकी सेवा लें।
- यह चढ़ाई जीवन-यात्रा में आत्मा के मुक्तिपथ का प्रतीक है।
श्राद्ध हेतु सर्वसामान्य घाटदेव घाट, विष्णुपद मंदिर के नीचे, माता-पिता के श्राद्ध के लिए सर्वश्रेष्ठ:
- तीर्थनगरी का केंद्र
- शास्त्रीय अनुशासन में निपुण गयावल पंड
- प्रातः-रात्रि अनुष्ठान से अक्षुण्ण पवित्रता
पहले पुनपुन घाट पर तर्पण, फिर देव घाट पर पिंडदान अनिवार्य।
गयावल पंड से आरक्षण
- सरकारी पोर्टल: pinddaangaya.bihar.gov.in → “पंडा जी सूची” → 9266628168 / 06312222500
- मोबाइल ऐप: “Pitrapaksh Mela” ऐप → “पंडा जी सूची” → बुकिंग
- ऑन-साइट: विष्णुपद परिसर कार्यालय में फॉर्म भरें, शुल्क (नकद/UPI) जमा करें
आरक्षण समय:
- पितृ पक्ष: 45–60 दिन पूर्व
- अन्य: 2–4 सप्ताह पूर्व
शुल्क:
- सरकारी पंड: ₹2,000–3,500 प्रति पुरोहित/दिन
- निजी पंड: ₹4,000–10,000 (सामग्री सहित)
यात्रा सुझाव
- श्राद्ध दिवस 30–45 मिनट पूर्व पहुँचें।
- सुबह 6 बजे तर्पण-पिंडदान आरंभ करें।
- जुलाई-अगस्त व पितृ पक्ष (सितंबर) में फल्गु नदी का प्रवाह शक्तिशाली रहता है।
जब गया में अपने माता-पिता के लिए पिंडदान कर रहे हों, क्या एक ही समय में अन्य दिवंगत संबंधियों की ओर से आर्थिक दान देना उचित है?
आप विचार कर सकते हैं:
- वंशानुगत रीति-रिवाजों के लिए अपने पारिवारिक पंडित से परामर्श लें कि संयुक्त समर्पण कब और कैसे किया जाए
- पंडित से स्पष्ट करें कि क्या दक्षिणा (पंडित का मानधन) और अन्य पूर्वजों के लिए दान के कार्य अलग-अलग विधि या तिथि पर करने आवश्यक हैं
- पितृपक्ष के कार्यक्रम की समीक्षा करें—कुछ दिन विशिष्ट पूर्वजों के लिए आरक्षित होते हैं, जो यह निर्धारित कर सकते हैं कि अनुष्ठान एक साथ हों या पृथक्
मंगला गौरी मंदिर की कथा
- 51 महाशक्तिपीठों में से एक, जहाँ सती का वक्षभाग गिरा।
- वैवाहिक सौहार्द्र, प्रजनन व गृहशांति हेतु विशेष पूजा।
- पूजा-सामग्री: लाल चूड़ियाँ; सात फल; पांच मीठे; तेल दीपक; अखंड दीपक।
- समय: प्रतिदिन 05:00–13:00 एवं 15:00–22:00।
- स्थान: गया रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी.; हवाई अड्डा से 9 कि.मी।
- मॉनसून में मंगलवार को विशेष प्रसाद अर्पण व अखंड दीपक पूजा सौभाग्यदायक।
उपयोगी लिंक
https://tourism.bihar.gov.in/en/destinations/gaya/pretshila/
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