जब भाद्रपद मास में चंद्रमा क्षीण होता है, तब स्मृति और श्रद्धा का एक पवित्र द्वार खुलता है—पितृ पक्ष, वह सोलह दिवसीय कालखंड जब परिवार अपने पूर्वजों को अर्पण, प्रार्थना और जलदान के माध्यम से सम्मानित करते हैं।
यह शोक नहीं, यह संवाद है। एक ऐसा अनुष्ठान जहाँ प्रेम पीढ़ियों की सीमाओं को पार करता है।
हर दिन एक विशिष्ट तिथि से जुड़ा होता है, जिसके अनुसार उस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनका देहावसान उसी तिथि को हुआ था।
🪔 वो अनुष्ठान जो दो लोकों को जोड़ते हैं
🌑 महालय अमावस्या: समस्त पितरों का आह्वान
अंतिम दिन, सर्वपितृ अमावस्या, वह दिन है जब ज्ञात-अज्ञात सभी पूर्वजों को एक साथ अर्पण किया जाता है। यह पितृ पक्ष का चरम बिंदु है—वंश, प्रेम और मोक्ष का सामूहिक आलिंगन।
🚫 संयम का समय
पितृ पक्ष के दौरान हिंदू धर्म में वर्जित माने जाते हैं:
यह समय है मौन, मनन और श्रद्धा का—ना कि उत्सव का।
🌿 पितृ कृपा के संकेत
जब कौआ अर्पण स्वीकार करता है, जब स्वप्नों में शांत भाव से पूर्वज प्रकट होते हैं, जब बिना अपेक्षा के आशीर्वाद मिलते हैं—ये संकेत हैं कि आपकी श्रद्धा उन तक पहुँच गई है।
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